कोचिंग पर कोरोना का प्रभाव (Effects of Covid-19 on Coachings)
कोरोना वायरस ने बीते महीनों से देश में अफरातफरी का माहौल कायम कर दिया है.फिलहाल लोग दो मोर्चे पर लड़ाई लड़ रहे हैं,पहला कोरोना वायरस से बचाव और दूसरा परिवार का पेट भरने की लड़ाई.गांव से लेकर शहर तक कोरोना ने अपना कहर बरपाया है.इसका सबसे अधिक खामियाजा निजी शिक्षक और कोचिंग संचालक भुगत रहे हैं.
बीते वर्ष में भी लगभग छः महीने तक कोचिंग संस्थानों को पुर्णतः बंद करना पड़ा था.2020 के अंत में जैसे तैसे कोचिंग सेक्टर ने अपना रोजगार शुरू किया,वैसे ही पुनः कोरोना के दुसरे और खतरनाक स्ट्रेन ने धावा बोल दिया.अब स्थिति कबतक सुधरेगी,इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है.इन्ही बातों को सोंचकर निजी शिक्षक बहुत ही मायूस दिख रहे हैं.
पिछले साल मार्च के अंत में पुरे देश भर में लॉक डाउन की घोषणा हुई थी.मई के अंतिम तक देश पूरी तरह से बंद था.जून के प्रारम्भ से अनलॉक की प्रक्रिया प्रारंभ हुई,धीरे धीरे चीजों को छुट दी जाने लगी,लेकिन कोचिंग संस्थान उसमे नहीं थे.नवम्बर महिना तक कुल 06 चरणों में देश को अनलॉक किया गया.इस दौरान लगभग 08 महीने तक तमाम कोचिंग इंस्टिट्यूट और क्लासेज बंद पड़े रहे.लगभग निजी विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों का पेमेंट लंबित रहा था.
अधिकतर कोचिंग संस्थान किराया के मकान में चलते हैं.चुकी बड़ा जगह चाहिए होता है,इसलिए किराया भी बड़ा रकम होता है.संस्थानों और शिक्षकों के आग्रह पर कुछ मकान मालिकों ने किराया में थोडा बहुत छूट दिया था जबकि बाकियों को पूरा किराया भुगतान करना पड़ा था.जैसे तैसे छोटे और बड़े शिक्षकों ने किराया चुकता किया और हिम्मत जुटा कर दिसंबर माह से पढ़ाना शुरू किया.शिक्षकों को लगा की अब संकट टल गया है,फिर से स्थिति ठीक हो जाएगी.
उधर लगभग छोटे बड़े सभी निजी विद्यालयों ने अपने यहाँ कार्यरत शिक्षकों को पूरा वेतन भुगतान नहीं किया.हालाकि इस सम्बन्ध में सरकार द्वारा दिशानिर्देश भी जारी किया गया था लेकिन उसका अनुपालन मुश्किल था.कई शिक्षक जो शहरों में रहकर पठन पाठन का काम करते थे,उन्होंने शहर के किराए के मकान को खाली कर परिवार समेत अपने गावं लौटने पर विवश हो गए.ऐसे शिक्षकों को किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली.
सैकड़ों शिक्षक ऐसे हैं जो शहर में रहकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते हैं,उनका पूरा परिवार उस पैसे से चलता है.अब उनके पास रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है.
एक कोचिंग संचालक ने बताया की कोचिंग में मार्च से मई या जून तक एडमिशन का महिना होता है.इसी समय जो पैसा मिलता है,उससे पुरे वर्ष परिवार का भरण पोषण साथ ही साथ कोचिंग चलाने का खर्च निकालना पड़ता है.कोचिंग चलाने में जगह का किराया,बिजली बिल इत्यादि बहुत देना पड़ता है.तो पिछले वर्ष भी सबकुछ घर से या कर्ज लेकर पूरा किया गया और इस साल भी वहीँ हाल हुआ है.अब अंदर से हिम्मत टूट गया है,धीरे धीरे दुसरे रोजगार की तरफ देखना पड़ेगा वरना परिवार भूखा मरेगा.
मोटे तौर पर निजी शिक्षकों को इस कोरोना वायरस ने बहुत दर्द दिया है.कई नौजवान कोचिंग सेक्टर में अपना भविष्य देखकर मेहनत कर रहे थे अब उनका धैर्य जवाब दे रहा है.सरकार या अन्य सामाजिक संस्थाओं से इस उद्योग के लोगों को कोई रियायत नहीं मिली है और न हीं मिलने की उम्मीद है.कोरोना से बच्चे अब खुद डरने लगे हैं और उनके परिजन भी नहीं चाहते हैं की वो कोचिंग क्लास जाएँ.