स्वेज नहर की यह रुकावट अब पूरी दुनियां को बुरी तरह प्रभावित कर दी ।वाणिज्य- उद्योग मंत्रालय के मुताबिक भारत इस नहर के जरिए उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और यूरोप से 200 बिलियन अमरीकी डालर के सामान का आयात-निर्यात करता है. इस ट्रेड में पेट्रोलियम सामान, लोहा, इस्पात, ऑटोमोबाइल, मशीनरी, कपड़ा, कालीन, फर्नीचर, चमड़े का सामान आदि शामिल हैं।
इंजीनियर्स को मिला सुपरमून का फायदा
दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्गो शिप "एमवी एवरगिवेन" रविवार को स्वेज नहर पर तैरने में कामयाब हो गया. 400 मीटर लंबे और 224,000 टन के इस जहाज को निकालने की कोशिशें 6 दिनों से जारी थीं. लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि एंपायर स्टेट बिल्डिंग जितने बड़े इस जहाज को निकालने में न क्रेन काम आई और न ही दुनिया की कोई और आधुनिक मशीनरी. इसे निकालने में मदद की सुपरमून ने।चांद की वजह से इस जहाज को निकलने में मदद मिली. सुपरमून या फुल मून के समय समंदर में काफी तेजी से ऊंची-ऊंची लहरें उठती हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चांद, सूरज के साथ एक ही रेखा में होता है।फुल मून की स्थिति में या तो चांद या फिर पृथ्वी, बीच में होते हैं. इसकी वजह से धरती पर गुरुत्वाकर्षण ताकतों में इजाफा होता है।इसकी वजह से ही समंदर की लहरें बहुत ऊंची होती हैं और लो टाइड की स्थिति में बहुत ही नीचे होती हैं।इन्हें स्प्रिंग टाइड्स के तौर पर कहते हैं और एक माह में दो बार ये स्थिति बनती है।
भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती है नहर
भूमध्य सागर और लाल सागर को जोड़ने के लिए 19वीं सदी में बनाया गया आर्किटेक्चर का ऐसा नूमना जिसकी आज हर ओर चर्चा है। स्वेज नहर में एक जहाज करीब 1 सप्ताह से फंसा था और उसे निकालने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पे सभी को आना पड़ा।
स्वेज नहर इजिप्ट में एक ही समुद्र-स्तरीय जलमार्ग है
यह नहर भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती है और एशिया-यूरोप के बीच सबसे छोटा समुद्री यातायात का माध्यम है। मंगलवार को जापान का 224,000 टन का कंटेनर जहाज स्वेज नहर में जा रहा था. तभी हवा के तेज झोंकों की वजह से जहाज पानी में घूम गया और पूरी नहर को ब्लॉक कर दिया. इसी के साथ सबसे व्यस्त रहने वाला दुनिया का यह जलमार्ग पूरी तरह से जाम हो गया था इस नहर के ब्लॉक होने की वजह से तेल से लेकर उपभोक्ता वस्तुओं तक के कार्गो ले जाने वाले जहाज जाम में फंसे पड़े थे ।
दुनिया के 30 प्रतिशत कंटेनर शिप यहीं से गुजरते हैं
स्वेज नहर दुनिया के व्यापार में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे एशिया से यूरोप की दूरी कम हो जाती है और अफ्रीका का चक्कर नहीं लगाना पड़ता. इससे 10 हजार किलोमीटर की दूरी कम होती है।भारत से लंदन की दूरी स्वेज नहर के रास्ते 11482 किलोमीटर है. जबकि अफ्रीका के रास्ते 20,001 किलोमीटर है. यानी आप मुबई से लंदन स्वेज नहर के रास्ते 15 से 17 दिन में पहुंच जाएंगे, जबकि अफ्रीका के रास्ते जाने में आपको दो गुनी दूरी तय करनी होगी।
हो रहा था करोड़ो का नुकसान
स्वेज नहर में फंसे इस कार्गो शिप का वीडियो मीडिया में काफ़ी चर्चा का विषय बन गया है क्योंकि जाम से इजिप्ट को हर घंटे 2800 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. यानी एक दिन में 67 हजार 200 करोड़ रुपये. यह नुकसान इजिप्ट को मिलने वाले टोल टैक्स का है, जो वह इस नहर से गुजरने वाले हर शिप से वसूलता है. यह कंटेनर शिप ताईवान की शिपिंग कंपनी Evergreen Marine Corps के नाम रजिस्टर्ड है ।
समुद्री जाम से निजाजत नही मिलता तो हो सकता था आर्थिक संकट (महंगाई)
193 किमी लंबी और 205 मीटर चौड़ी इस नहर से 10 हजार किमी की दूरी की बचत होती है। ऐसा न हो तो पूरा अफ्रीका महाद्वीप घूमकर यूरोप और अमेरिका जाना पड़ता अधिकारियों के मुताबिक अगर समय पर जाम न खुलता तो दूसरे रास्ते को माल भेजने के लिए अपनाना होता और तब खर्च बढ़ जाता जिसका असर कीमतों पर पड़ता।
समुद्री ब्लॉक खुलने का इंतजार
उत्तर और दक्षिण में 200 से अधिक जहाज ब्लॉकेज खुलने का इंतजार होता रहा, वहां रोजाना पहुंचने वाले करीब 60 जहाज इस कड़ी में और जुड़ते जा रहे थे।बैठक में इस बात पर चर्चा की गई थी की यदि नहर को और चौड़ा करके जहाज को अगले दो दिनों में सीधा भी कर दिया जाए गा तभी भी स्वेज नहर में यातायात की स्थिति सामन्य होने में एक सप्ताह का वक्त लग जाएगा। औऱ एक सप्ताह का वक्त लग चुका भी है।तब तक जाम में जहाजों की संख्या 400 से अधिक हो गई है , ऐसे में हालात की गंभीरता से निगरानी की जरूरत है. बैठक में तय किया गया कि FIEO (The Federation of Indian Export Organisations) MPEDA (Marine Products Export Development Authority) और APEDA (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority )मिलकर शिपिंग कार्गो के मूवमेंट की प्राथमिकता देंगी. उन्हें स्वेज नहर से जाने की सलाह नहीं दी जाएगी. CSLA ने आश्वासन दिया सभी फ्रेट कार्गो पर पहले के कांट्रेक्ट ही लागू रहेंगे ।लेकिन अब ब्लॉकेज खुलने के बाद स्थिति सामन्य नजर आरही है , कड़ी निगरानी के बीच सारे जहाजो को निकाला जा रहा है।
साल का पहला सुपरमून
स्वेज नहर में फंसे इस जहाज को साल के पहले सुपरमून के दौरान निकाला गया है. वैज्ञानिक मानते हैं कि पहले सुपरमून का प्रभाव भी काफी शक्तिशाली होता है. पहले सुपरमून में चांद, धरती के एकदम करीबी कक्षा में होता है. सुपरमून साल में कई बार होता है. रविवार को जो सुपरमून था उसे वॉर्म मून कहा गया है।