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Thursday, May 2, 2024

Karakat को पवन पसंद है या नहीं ? क्यों गड़बड़ा गया है उपेन्द्र का गणित ?

Karakat को Pawan Singh पसंद है या नहीं ? क्यों गड़बड़ा गया है उपेन्द्र का गणित ?

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काराकाट सीट Karakat Loksabha Seat खुब चर्चा में है, कारण Pawan Singh का चुनाव लड़ना है. पवन सिंह जहाँ से गुजर रहे हैं, लोगों का जनसैलाब उमड़ रहा है, ज्यादातर नौजवान शामिल हैं. महिलाएं भी घरों के खिड़कियों और छतों से मोबाइल पर दिखने वाले पवन सिंह को देखना चाहती हैं. इन सबके बीच एक सवाल हर समझदार व्यक्ति के मन में है. क्या यह भीड़ वोट में कन्वर्ट होगी ?

इस सवाल का जवाब सब खोज भी रहे हैं और सब बता भी रहे हैं. गाँव के चाय दुकानों से लेकर बाजारों के मिनी संसद भवन तक अपनी अपनी राय लोगों द्वारा व्यक्त किया जा रहा है. 

भीड़ वोट में बदलेगी या नहीं इस सवाल का जवाब हम आगे जरूर चर्चा करेंगे लेकिन फिलहाल यह समझते हैं कि अभी की स्थिति क्या है काराकाट सीट पर ? 





उपेंद्र कुशवाहा/ Upendra Kushwaha मोदी के दूत बनकर फिर से काराकाट आए हैं. वह अपने नाम पर,अपने काम पर वोट मांगे या न मांगे लेकिन मोदी के नाम पर खुद दिल्ली पहुँचना चाहते हैं. पवन सिंह के चुनाव नहीं लड़ने से पहले तक काराकाट सीट NDA के लिए सुरक्षित माना जा रहा था. लेकिन पवन सिंह की एंट्री ने उपेंद्र की मुश्किलें बढ़ा दिया है. काराकाट के लोग अब पवन के जीतने की गारंटी दें या नहीं दें लेकिन उपेंद्र कुशवाहा को कमजोर बताने लगे हैं. इसके बहुत मायने हैं. साफ शब्दों में कहें तो काराकाट की लड़ाई अब पवन बनाम राजाराम सिंह की हो गई है. 

पवन सिंह का अपना समाज स्पष्ट रूप से खड़ा है, सिर्फ काराकाट क्षेत्र ही नहीं सासाराम संसदीय क्षेत्र Sasaram Loksabha के भी सैकड़ों युवा पवन सिंह के साथ खड़े होकर घुम रहे हैं. ऐसा माना जा रहा है कि यह सभी NDA के मजबूत वोटर हैं. इसका सीधा नुकसान NDA प्रत्याशी को हो रहा है. 

ईधर NDA ने क्षत्रिय समाज के अपने सभी नेताओं को काराकाट में उतार दिया है, ताकि अधिक नुकसान न हो लेकिन स्थिति संभलता नहीं दिख रहा है.


अब बात करते हैं कि भीड़ वोट में कन्वर्ट होगा कि नहीं ?

आम तौर पर ऐसा नहीं हुआ है कि बिना झंडा और चिन्ह के कोई बड़ा कलाकार कभी संसद गया हो क्योंकि दलों के पास बूथ स्तर तक अपना अनुभवी संगठन होता है. ऊपर से नीचे तक एक सिस्टम है,एक चैन है जिसके माध्यम से दिल्ली की बात भी गाँव के वोटर तक तत्काल पहुंच जाता है. वह सिस्टम पवन सिंह के पास अबतक नहीं है. चुनाव में बूथ स्तर तक के पदाधिकारियों द्वारा ही वोटर का प्रबंधन किया जाता है. लाखों मतदाताओं तक पहुँचना और उन्हें बूथ तक लेकर वोट पोल कराना बड़ी चुनौती होती है. यह सारा तंत्र बड़ी बड़ी पार्टियों के पास उपलब्ध है. 

पवन सिंह प्रचार के दौरान मोदी को ही अपना आदर्श बता रहे हैं और उनके समाज के समर्थक भी यह मैसेज फैला रहे हैं कि पवन सिंह भाजपा के हैं और उन्हें भाजपा ने ही भेजा है और जीतकर भाजपा को ही समर्थन देंगे इसलिए उपेंद्र कुशवाहा के हारने से मोदी जी को नुकसान नहीं होगा.

-Ratnesh Raman Pathak

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